रामायण - अध्याय 7 - उत्तरकाण्ड - भाग 8

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(8) काकभुशुण्डि का अपनी पूर्व जन्म कथा और कलि महिमा कहनाचौपाई : * सुनु खगेस रघुपति प्रभुताई। कहउँ जथामति कथा सुहाई।।जेहि बिधि मोह भयउ प्रभु मोही। सोउ सब कथा सुनावउँ तोही॥1॥ भावार्थ:-हे पक्षीराज गरुड़जी! श्री रघुनाथजी की प्रभुता सुनिए। मैं अपनी बुद्धि के अनुसार वह सुहावनी कथा कहता हूँ। हे प्रभो! मुझे जिस प्रकार मोह हुआ, वह सब कथा भी आपको सुनाता हूँ॥1॥ * राम कृपा भाजन तुम्ह ताता। हरि गुन प्रीति मोहि सुखदाता॥ताते नहिं कछु तुम्हहि दुरावउँ। परम रहस्य मनोहर गावउँ॥2॥ भावार्थ:-हे तात! आप श्री रामजी के कृपा पात्र हैं। श्री हरि के गुणों में आपकी प्रीति है, इसीलिए