तलाश-8 (गंताक से आगे) विभत्स से थे ये शब्द ...एक पल के लिये कविता को लगा कि सारी धरती घूम रही है तेज ...बहुत तेज और वो गिरने को हो आई , सम्भाला उसने अपने आप को , वो जानती थी ..कुछ भी बोलेगी तो परिणाम कुछ ऐसा ही होगा, पर लम्बी चुप्पी अपने लिये ही तो घातक थी, और आज उसने मन की घुटन को जाहिर कर दिया, अब यहां पर एक पल भी खड़ा होना मुश्किल लग रहा था, उसने एक उड़ती सी नजर मेज पर डाली जहां पर उसे उपहार में मिले कुछ लाल और नीले वेलवेट