(14) विभीषण की प्रार्थना, श्री रामजी के द्वारा भरतजी की प्रेमदशा का वर्णन, शीघ्र अयोध्या पहुँचने का अनुरोधचौपाई : * करि बिनती जब संभु सिधाए। तब प्रभु निकट बिभीषनु आए॥नाइ चरन सिरु कह मृदु बानी। बिनय सुनहु प्रभु सारँगपानी॥1॥ भावार्थ:-जब शिवजी विनती करके चले गए, तब विभीषणजी प्रभु के पास आए और चरणों में सिर नवाकर कोमल वाणी से बोले- हे शार्गं धनुष के धारण करने वाले प्रभो! मेरी विनती सुनिए-॥1॥ * सकुल सदल प्रभु रावन मार्यो। पावन जस त्रिभुवन विस्तार्यो॥दीन मलीन हीन मति जाती। मो पर कृपा कीन्हि बहु भाँती॥2॥ भावार्थ:-आपने कुल और सेना सहित रावण का वध किया,