(4) रावण को पुनः मन्दोदरी का समझाना* साँझ जानि दसकंधर भवन गयउ बिलखाइ।मंदोदरीं रावनहिं बहुरि कहा समुझाइ॥35 ख॥ भावार्थ:- सन्ध्या हो गई जानकर दशग्रीव बिलखता हुआ (उदास होकर) महल में गया। मन्दोदरी ने रावण को समझाकर फिर कहा-॥35 (ख)॥ चौपाई : * कंत समुझि मन तजहु कुमतिही। सोह न समर तुम्हहि रघुपतिही॥रामानुज लघु रेख खचाई। सोउ नहिं नाघेहु असि मनुसाई॥1॥ भावार्थ:- हे कान्त! मन में समझकर (विचारकर) कुबुद्धि को छोड़ दो। आप से और श्री रघुनाथजी से युद्ध शोभा नहीं देता। उनके छोटे भाई ने एक जरा सी रेखा खींच दी थी, उसे भी आप नहीं लाँघ सके, ऐसा तो