रामायण - अध्याय 6 - लंकाकाण्ड - भाग 2

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(2) सुबेल पर श्री रामजी की झाँकी और चंद्रोदय वर्णनचौपाई : * इहाँ सुबेल सैल रघुबीरा। उतरे सेन सहित अति भीरा॥सिखर एक उतंग अति देखी। परम रम्य सम सुभ्र बिसेषी॥1॥ भावार्थ : यहाँ श्री रघुवीर सुबेल पर्वत पर सेना की बड़ी भीड़ (बड़े समूह) के साथ उतरे। पर्वत का एक बहुत ऊँचा, परम रमणीय, समतल और विशेष रूप से उज्ज्वल शिखर देखकर-॥1॥ * तहँ तरु किसलय सुमन सुहाए। लछिमन रचि निज हाथ डसाए॥ता पर रुचिर मृदुल मृगछाला। तेहिं आसन आसीन कृपाला॥2॥ भावार्थ : वहाँ लक्ष्मणजी ने वृक्षों के कोमल पत्ते और सुंदर फूल अपने हाथों से सजाकर बिछा दिए। उस