6 - लंकाकाण्ड (1) षष्ठ सोपान- मंगलाचरण श्लोक : * रामं कामारिसेव्यं भवभयहरणं कालमत्तेभसिंहंयोगीन्द्रं ज्ञानगम्यं गुणनिधिमजितं निर्गुणं निर्विकारम्।मायातीतं सुरेशं खलवधनिरतं ब्रह्मवृन्दैकदेवंवन्दे कन्दावदातं सरसिजनयनं देवमुर्वीशरूपम्॥1॥ भावार्थ : कामदेव के शत्रु शिवजी के सेव्य, भव (जन्म-मृत्यु) के भय को हरने वाले, काल रूपी मतवाले हाथी के लिए सिंह के समान, योगियों के स्वामी (योगीश्वर), ज्ञान के द्वारा जानने योग्य, गुणों की निधि, अजेय, निर्गुण, निर्विकार, माया से परे, देवताओं के स्वामी, दुष्टों के वध में तत्पर, ब्राह्मणवृन्द के एकमात्र देवता (रक्षक), जल वाले मेघ के समान सुंदर श्याम, कमल के से नेत्र वाले, पृथ्वीपति (राजा) के रूप में परमदेव श्री रामजी की