रामायण - अध्याय 5 - सुंदरकाण्ड - भाग 6

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(6) विभीषण का भगवान्‌ श्री रामजी की शरण के लिए प्रस्थान और शरण प्राप्तिदोहा : * रामु सत्यसंकल्प प्रभु सभा कालबस तोरि।मैं रघुबीर सरन अब जाउँ देहु जनि खोरि॥41॥ भावार्थ:-श्री रामजी सत्य संकल्प एवं (सर्वसमर्थ) प्रभु हैं और (हे रावण) तुम्हारी सभा काल के वश है। अतः मैं अब श्री रघुवीर की शरण जाता हूँ, मुझे दोष न देना॥41॥ चौपाई : * अस कहि चला बिभीषनु जबहीं। आयू हीन भए सब तबहीं॥साधु अवग्या तुरत भवानी। कर कल्यान अखिल कै हानी॥1॥ भावार्थ:-ऐसा कहकर विभीषणजी ज्यों ही चले, त्यों ही सब राक्षस आयुहीन हो गए। (उनकी मृत्यु निश्चित हो गई)। (शिवजी कहते