रामायण - अध्याय 3 - अरण्यकाण्ड - भाग 6

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(6) शबरी पर कृपा, नवधा भक्ति उपदेश और पम्पासर की ओर प्रस्थान* ताहि देइ गति राम उदारा। सबरी कें आश्रम पगु धारा॥सबरी देखि राम गृहँ आए। मुनि के बचन समुझि जियँ भाए॥3॥ भावार्थ : उदार श्री रामजी उसे गति देकर शबरीजी के आश्रम में पधारे। शबरीजी ने श्री रामचंद्रजी को घर में आए देखा, तब मुनि मतंगजी के वचनों को याद करके उनका मन प्रसन्न हो गया॥3॥ * सरसिज लोचन बाहु बिसाला। जटा मुकुट सिर उर बनमाला॥स्याम गौर सुंदर दोउ भाई। सबरी परी चरन लपटाई॥4॥ भावार्थ : कमल सदृश नेत्र और विशाल भुजाओं वाले, सिर पर जटाओं का मुकुट और