रामायण - अध्याय 3 - अरण्यकाण्ड - भाग 5

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(5) श्री सीताहरण और श्री सीता विलाप* सून बीच दसकंधर देखा। आवा निकट जती कें बेषा॥जाकें डर सुर असुर डेराहीं। निसि न नीद दिन अन्न न खाहीं॥4॥ भावार्थ : रावण सूना मौका देखकर यति (संन्यासी) के वेष में श्री सीताजी के समीप आया, जिसके डर से देवता और दैत्य तक इतना डरते हैं कि रात को नींद नहीं आती और दिन में (भरपेट) अन्न नहीं खाते-॥4॥ * सो दससीस स्वान की नाईं। इत उत चितइ चला भड़िहाईं॥इमि कुपंथ पग देत खगेसा। रह न तेज तन बुधि बल लेसा॥5॥ भावार्थ : वही दस सिर वाला रावण कुत्ते की तरह इधर-उधर ताकता