रामायण - अध्याय 2 - अयोध्याकांड - भाग 13

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(13) वशिष्ठ-भरत संवाद, श्री रामजी को लाने के लिए चित्रकूट जाने की तैयारीदोहा : * तात हृदयँ धीरजु धरहु करहु जो अवसर आजु।उठे भरत गुर बचन सुनि करन कहेउ सबु साजु॥169॥ भावार्थ:-(वशिष्ठजी ने कहा-) हे तात! हृदय में धीरज धरो और आज जिस कार्य के करने का अवसर है, उसे करो। गुरुजी के वचन सुनकर भरतजी उठे और उन्होंने सब तैयारी करने के लिए कहा॥169॥ चौपाई : * नृपतनु बेद बिदित अन्हवावा। परम बिचित्र बिमानु बनावा॥गाहि पदभरत मातु सब राखी। रहीं रानि दरसन अभिलाषी॥1॥ भावार्थ:-वेदों में बताई हुई विधि से राजा की देह को स्नान कराया गया और परम विचित्र