(2) सरस्वती का मन्थरा की बुद्धि फेरना, कैकेयी-मन्थरा संवाद, प्रजा में खुशीदोहा : * नामु मंथरा मंदमति चेरी कैकइ केरि।अजस पेटारी ताहि करि गई गिरा मति फेरि॥12॥ भावार्थ:-मन्थरा नाम की कैकेई की एक मंदबुद्धि दासी थी, उसे अपयश की पिटारी बनाकर सरस्वती उसकी बुद्धि को फेरकर चली गईं॥12॥ चौपाई : * दीख मंथरा नगरु बनावा। मंजुल मंगल बाज बधावा॥पूछेसि लोगन्ह काह उछाहू। राम तिलकु सुनि भा उर दाहू॥1॥ भावार्थ:-मंथरा ने देखा कि नगर सजाया हुआ है। सुंदर मंगलमय बधावे बज रहे हैं। उसने लोगों से पूछा कि कैसा उत्सव है? (उनसे) श्री रामचन्द्रजी के राजतिलक की बात सुनते ही उसका