(17) श्री राम-लक्ष्मण को देखकर जनकजी की प्रेम मुग्धतादोहा : * प्रेम मगन मनु जानि नृपु करि बिबेकु धरि धीर।बोलेउ मुनि पद नाइ सिरु गदगद गिरा गभीर॥215॥ भावार्थ:-मन को प्रेम में मग्न जान राजा जनक ने विवेक का आश्रय लेकर धीरज धारण किया और मुनि के चरणों में सिर नवाकर गद्गद् (प्रेमभरी) गंभीर वाणी से कहा- ॥215॥ चौपाई : * कहहु नाथ सुंदर दोउ बालक। मुनिकुल तिलक कि नृपकुल पालक॥ब्रह्म जो निगम नेति कहि गावा। उभय बेष धरि की सोइ आवा॥1॥ भावार्थ:-हे नाथ! कहिए, ये दोनों सुंदर बालक मुनिकुल के आभूषण हैं या किसी राजवंश के पालक? अथवा जिसका वेदों