(16) विश्वामित्र का राजा दशरथ से राम-लक्ष्मण को माँगना, ताड़का वधदोहा : * ब्यापक अकल अनीह अज निर्गुन नाम न रूप।भगत हेतु नाना बिधि करत चरित्र अनूप॥205॥ भावार्थ:-जो व्यापक, अकल (निरवयव), इच्छारहित, अजन्मा और निर्गुण है तथा जिनका न नाम है न रूप, वही भगवान भक्तों के लिए नाना प्रकार के अनुपम (अलौकिक) चरित्र करते हैं॥205॥ चौपाई : * यह सब चरित कहा मैं गाई। आगिलि कथा सुनहु मन लाई॥बिस्वामित्र महामुनि ग्यानी। बसहिं बिपिन सुभ आश्रम जानी॥1॥ भावार्थ:-यह सब चरित्र मैंने गाकर (बखानकर) कहा। अब आगे की कथा मन लगाकर सुनो। ज्ञानी महामुनि विश्वामित्रजी वन में शुभ आश्रम (पवित्र स्थान)