रामायण - अध्याय 1 - बालकाण्ड - भाग 15

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(15) भगवान्‌ का वरदानदोहा : * जानि सभय सुर भूमि सुनि बचन समेत सनेह।गगनगिरा गंभीर भइ हरनि सोक संदेह॥186॥ भावार्थ:-देवताओं और पृथ्वी को भयभीत जानकर और उनके स्नेहयुक्त वचन सुनकर शोक और संदेह को हरने वाली गंभीर आकाशवाणी हुई॥186॥ चौपाई : * जनि डरपहु मुनि सिद्ध सुरेसा। तुम्हहि लागि धरिहउँ नर बेसा॥अंसन्ह सहित मनुज अवतारा। लेहउँ दिनकर बंस उदारा॥1॥ भावार्थ:-हे मुनि, सिद्ध और देवताओं के स्वामियों! डरो मत। तुम्हारे लिए मैं मनुष्य का रूप धारण करूँगा और उदार (पवित्र) सूर्यवंश में अंशों सहित मनुष्य का अवतार लूँगा॥1॥ * कस्यप अदिति महातप कीन्हा। तिन्ह कहुँ मैं पूरब बर दीन्हा॥ते दसरथ कौसल्या