कालवाची की दृष्टि जैसे ही कुशाग्रसेन से मिली तो उसने लज्जावश अपने नयनपट बंद कर लिए,कुशाग्रसेन भी अभी तक कालवाची को एकाग्रचित होकर देख रहे थे,दोनों के मध्य का मौन कौत्रेय ने तोड़ने का प्रयास किया एवं वो राजा कुशाग्रसेन से बोला.... महाराज!इसका नाम कालिन्दी है एवं ये उस ओर एक कुटिया में रहती है,बेचारी अत्यन्त निर्धन है,बेचारी के भाग्य में पर्याप्त मात्रा में भोजन भी नहीं लिखा,मुझे इस पर दया आ गई तो मैने इससे कहा कि हमारे वैतालिक राज्य के राजा कुशाग्रसेन अत्यन्त ही दयालु प्रवृत्ति के हैं,वें अवश्य ही तुम्हारी सहायता करेगें,इसे तो मेरी बात पर विश्वास