विचार सरिता सब कुछ अपने अनुसार नहीं होतागीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है:-नैव तस्य कृतेनार्थो नाकृतेनेह कश्चन।न चास्य सर्वभूतेषु कश्चिदर्थव्यपाश्रयः।।3/18।।तस्मादसक्तः सततं कार्यं कर्म समाचर।असक्तो ह्याचरन्कर्म परमाप्नोति पूरुषः।।3/19।।इसका अर्थ है,हे अर्जुन!उस (पूर्व श्लोक के आत्मा में ही रमण करने वाले) महापुरुष का इस संसार में न तो कर्म करने से कोई प्रयोजन रहता है,और न कर्म न करने से ही कोई प्रयोजन रहता है।उसका सम्पूर्ण प्राणियों में किसी के साथ भी स्वार्थ का सम्बन्ध नहीं रहता है।अतः तू निरन्तर आसक्तिरहित होकर कर्तव्य-कर्म का अच्छी तरह आचरण कर,क्योंकि ऐसा मनुष्य परमात्मा को प्राप्त हो जाता है। भगवान श्री कृष्ण ने एक