खुद भी एक व्यंग्यकार होने के नाते मुझे और भी कई अन्य व्यंग्यकारों का लिखा हुआ पढ़ने को मिला मगर ज़्यादातर में मैंने पाया कि अख़बारी कॉलम की तयशुदा शब्द सीमा में बँध अधिकतर व्यंग्यकार बात में से बात निकालने के चक्कर में बाल की खाल नोचते नज़र आए यानी कि बेसिरपैर की हांकते नज़र आए। ऐसे में अगर आपको कुछ ऐसा पढ़ने को मिल जाए कि हर दूसरी-तीसरी पंक्ति में आप मुस्कुरा का वाह कर उठें तो समझिए कि आपका दिन बन गया।दोस्तों.. आज मैं ऐसे ही एक दिलचस्प व्यंग्य संग्रह की बात करने जा रहा हूँ जिसे 'बातें