"दस्तक दिल पर" किश्त-9 मैं वहीं एक चाय वाले कि दुकान पर बैठ गया चाय बनवा ली, उसकी चुस्कियाँ लेने लगा। मुझे उसके मैसेज का इन्तज़ार था, पता नहीं था ,मुझे वहाँ से ही वापस लौट जाना था कि उससे मिल पाना सम्भव होने वाला था, कुछ भी नहीं पता था। मैं उसके बारे में ही सोच रहा था, कैसे दो अजनबी जो कभी एक दूजे से नहीं मिले, जानते भी नहीं थे , फिर इतना लगाव ,प्यार कैसे हो गया था....? मुझे उस दिन बड़ा अपमान महसूस हुआ था जब पहली बार उसका फ़ोन आया था। मैंने अपनी lic