दस्तक दिल पर - भाग 7

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"दस्तक दिल पर" किश्त-7 कितनी मुक़म्मल मुलाक़ात हुई थी वो ...साठ मिनट क्या थे, एक पूरा आकाशगंगा का चक्कर था। ज़िन्दगी छोटी पड़ जाती है ऐसी मुलाक़ातों के लिये। ख़ैर उस मुक़म्मल मुलाक़ात के बाद की दूसरी मुलाक़ात ने बहुत तड़पाया मुझे....मुझे ही नहीं उसे भी तड़पाया। उस साठ मिनट की मुलाक़ात के बाद मैं दूसरे शहर होकर अपने घर आ गया था। शायद अगली मुलाक़ात का संयोग जल्दी ही निश्चित किया था ईश्वर ने। ठीक पाँचवे दिन ही मुझे फिर अपने क्षेत्रीय कार्यालय जाना पड़ा, इस बार अकेला नहीं था, कुछ और साथी भी थे। हम उसके ऑफ़िस जाने