श्रीमद् ‍भगवद्‍गीता - अध्याय 7

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अध्याय सात  अथ सप्तमोऽध्यायः- ज्ञानविज्ञानयोग  विज्ञान सहित ज्ञान का विषय, इश्वर की व्यापकता श्रीभगवानुवाच मय्यासक्तमनाः पार्थ योगं युञ्जन्मदाश्रयः । असंशयं समग्रं मां यथा ज्ञास्यसि तच्छृणु ॥ śrī bhagavānuvācamayyāsaktamanāḥ pārtha yōgaṅ yuñjanmadāśrayaḥ.asaṅśayaṅ samagraṅ māṅ yathā jñāsyasi tacchṛṇu৷৷7.1৷৷ भावार्थ : श्री भगवान बोले- हे पार्थ! अनन्य प्रेम से मुझमें आसक्त चित तथा अनन्य भाव से मेरे परायण होकर योग में लगा हुआ तू जिस प्रकार से सम्पूर्ण विभूति, बल, ऐश्वर्यादि गुणों से युक्त, सबके आत्मरूप मुझको संशयरहित जानेगा, उसको सुन॥1॥  ज्ञानं तेऽहं सविज्ञानमिदं वक्ष्याम्यशेषतः । यज्ज्ञात्वा नेह भूयोऽन्यज्ज्ञातव्यमवशिष्यते ॥   jñānaṅ tē.haṅ savijñānamidaṅ vakṣyāmyaśēṣataḥ.yajjñātvā nēha bhūyō.nyajjñātavyamavaśiṣyatē৷৷7.2৷৷ भावार्थ : मैं तेरे लिए इस