संस्कार

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अमन कुमार त्यागी संदीप को क्रोध आ गया था। वह सीधा बाबू जी के पास पहँुचा और बिना किसी भूमिका के बरसना शुरू हो गया- ‘हद हो गई बाबू जी! अलका भी आख़िर इंसान ही तो है.... मुन्ना.... मैं और फिर आप! सभी की देखभाल वही तो करती है, आपकी सेवा में वह लगी रहती है.... परंतु फिर भी बाबू जी आपको सब्र नहीं आता.... अब समझ में आया.... बड़े भाइयों के पास आपकी दाल क्यों नहीं गली.... ग़लती उनकी नहीं, आप ही ग़लत हैं बाबू जी.... आपको बुढ़ापे में भी चटपटी चीजें़ चाहिएं और मनमानी भी...आख़िर हमारे जीवन की