दस्तक दिल पर - भाग 6

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दस्तक दिल पर- किश्त 6 मैं चहलकदमी कर अपना वक्त बिता रहा था। दिल मे कई सैलाब उठ रहे थे। कोई भीतर ही भीतर पूछ रहा था...."क्या कर रहे हो? कहाँ जा रहे हो?तुम्हारा और उसका क्या रिश्ता है? वो भी विवाहित और तुम भी…...!वो भी यही पूछती मुझसे। कहती बताओ तो हम क्यों अच्छे लगे?" कोई जवाब न सूझता। सर को झटक के सारे प्रश्नों को जैसे सर के बाहर कर दिया। दिल तो कुछ सुनने को तैयार ही नहीं! जैसे बच्चे की तरह ज़िद पर अड़ा हो, मुझे तो यही चाहिए!सच ही तो था....हम बच्चों जैसे ही हो