अग्निजा - 138

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लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-138 उस रात को प्रसन्न सो नहीं पाया। उसका तकिया गीला हो रहा था। उसे पश्चाताप हो रहा था कि उसने बेकार ही केतकी को उसके भूतकाल की याद दिला दी। क्या उससे उसका मन हल्का हुआ होगा? या फिर से और तकलीफ हुई होगी? प्रसन्न ने कम से कम पांच बार उन कागजों को पढ़ा। उसका एक-एक शब्द उसे दिल-दिमाग पर आघात कर रहा था। रातभर के जागरण के बाद भी वह स्कूल जाने के लिए तैयार हो गया। आज घंटा भर पहले ही स्कूल पहुंचकर वह केतकी की राह देखने लगा। केतकी सामने आयी तो