मौत के चितेरे यानी सूरियलोजिस्ट मूसा कच्छी

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नीलम कुलश्रेष्ठ उनके बचपन ने मौत को बेहद करीब से देखा था। यों तो उनके अब्बा हुज़ूर उनमें अकल आने से पूर्व ही दुनिया से कूच कर गये थे, लेकिन मूसा कच्छी ने इस मौत को अपनी अम्मी जान की ज़िन्दगी के लिये जद्दोजहद कश्मकश में तिल-तिल कर उभरते देखा । कतरा-कतरा मौत अपनी पूरी शख्सियत से उनकी रूह समाती चली गयी । बड़े होते ही जैसे एक जुनून सवार हो गया मौत को पकड़ने का। किसी सड़क दुर्घटना की खबर मिलते ही दौड़ पड़ते सड़क पर पड़े जख़्मी आदमी को देखने, जो तड़प-तड़प कर मौत के करीब जा रहा