झोपड़ी - 14 - मेरी जान

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किसी की जान बहुत कीमती होती है। यह पता तभी चलता है जब खुद किसी अपने की जान पर बन आती है। दादाजी और मैं एक दिन जंगल में घूम रहे थे। जंगल को भी हम लोगों ने अपनी तरफ से सुंदर और सजीला बना रखा था। जंगल में एक हिरण का बच्चा हमें दिखा। हमें देखते ही वो लंगड़ा कर भागने लगा। लेकिन कुछ दूर जाकर वह गिर पड़ा और कातर नजरों से हमारी तरफ देखने लगा। शायद वह समझ गया था कि अब उसकी जिंदगी का अंत आ गया है। हम जैसे ही उसके पास पहुंचे। वह आत्मसमर्पण