हवेली - 10

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## 10 ## मेंहदी का शक दूर हो गया। वह भी खुशी-खुशी सबके साथ शामिल होने के लिए राजी हो गई। पूर्णिमा चाय नाश्ते पैक करके वह भी सबके साथ चलने को तैयार हुई। हवेली के पीछे नदी की तरफ सभी चलने लगे। पत्थरों को काटते हुए नदी सरगम गा रही थी।दूर पहाड़ से नीचे गिरते हुए जलप्रपात,सूर्य की झिलमिलाती हुई रंगीन किरणें उस जलप्रपात में घुलकर और भी शोभायमान दिख रहीं थीं। सूर्यरश्मि जलतरंगों में प्रतिबिंबित होकर दूर हवेली में अपनी सुंदरता निखार रही थी। जंगल के बीचोंबीच नदी का प्रवाह, जंगल के प्रशांत वातावरण को आल्हादकारी बना रहा