गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 55

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विचार सरिता बांटने पर ही प्राप्त करने का अधिकारगीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है:-इष्टान्भोगान्हि वो देवा दास्यन्ते यज्ञभाविताः।तैर्दत्तानप्रदायैभ्यो यो भुङ्क्ते स्तेन एव सः।।3/12।।इसका अर्थ है, हे अर्जुन!यज्ञ द्वारा बढ़ाए देवतागण तुम्हें वांछित भोग प्रदान करेंगे। उनके द्वारा दिये हुये भोगों को जो पुरुष उनको दिए बिना ही भोगता है,वह निश्चय ही चोर है। पिछले श्लोकों में यज्ञ के स्वरूप और उसमें अंतर्निहित सामूहिकता, सहयोग और परोपकार भाव की चर्चा की गई। यज्ञ में अर्पित सामग्रियां शहद,घी, फल, जौ, तिल,अक्षत समिधा(प्रज्वलन हेतु लकड़ी) आदि हविष्य सामग्रियां स्वाहा अर्थात सही रीति से देवताओं तक पहुंचती हैं।ये शुद्ध, सात्विक और मूल्यवान पदार्थ