रात साक्षी है - प्रकरण 6

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‘रात साक्षी है’ (छह खंड) ‌ ‌ दीप लौ थके उनींद वैदेही सुत कुश शय्या पर लेटे । बर्हिजगत ने चुपके-चुपके अपने जाल समेटेभरी नींद में भी कब कैसे इदम् कहीं चुप होता ? निंदियारी उर्वर आँखों में अपनी फसलें बोताआँखें मलते लव उठ बैठे रजनी आथी बीती । 'उठो तात, मैंने जो देखा मन को चीथे देती।’‘मन के बिम्ब दिखाते रहते भूत-प्रेत सपने में ।' ‘नहीं तात, भूतों से क्या डर? समर मचा अन्तस् में ।'‘कैसा समर ? दुखी मत लव हो मन में द्वन्द्व न लाओ । विघ्न कौन अन्तस् को दहता सच सच मुझे बताओ ।" 'माॅं