‘रात साक्षी है’ (चतुर्थ खंड) जागरण उस रात राम भी सो न सके मन्थनरत निशि के प्रहर कटे । न्याय पक्ष को ढूँढ़ रही, उन आँखों को कब नींद लगे ?राजसी राम भी मौन दुखी अन्तस् का राम अबोला । भीतर लावा सुलग रहा जो भभका फूटा, मुहँ खोला-‘अन्तस् का दर्पण देख कहो संगत था क्या निर्वासन ? सीता की आँखों में झाँको उत्तर दो न राजसी मन ।कल हर सीता अपने घर से निष्कासित की जाएगी । पंचाट कौन, कहाँ दंडधर ?पीर सुनी क्या जाएगी ?राजा हो राम तुम्हीं बोलो सच से आँख चुराना क्या ? निर्मम सत्ता के