शास्त्रों में धर्म के दो प्रकार बतलाये गये हैं— एक सामान्य धर्म और दूसरा विशेष धर्म। सत्य, अहिंसा, प्रेम, भगवद्भक्ति— ये सब सामान्य धर्म हैं। इनका प्रत्येक देश में, प्रत्येक काल में और प्रत्येक व्यक्ति के द्वारा पालन किया जा सकता है तथा किया जाना चाहिये। ये सार्वभौम धर्म हैं। जो धर्म किसी जाति के लिये हो, किसी देश के लिये हो, किसी समय के लिये हो, उसे विशेष धर्म कहते हैं। ब्राह्मणधर्म, क्षत्रियधर्म, वैश्यधर्म –ये सब विशेष धर्म हैं।व्यावहारिक दृष्टि से सामान्य धर्म को निर्विशेष धर्म अर्थात् विशेषणरहित धर्म कह सकते हैं। और विशेष धर्म को सविशेष धर्म अर्थात्