हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 4

  • 4.7k
  • 2.8k

भाईजी का चरित्रबल एवं देवी सरोजनी का अलौकिक आत्मोत्सर्ग 'यह पूरा प्रसंग पूज्य बाबा के हाथ से लिखा हुआ है। वे स्लेट पर लिखते थे,पिताजी उसकी नकल कर लेते थे।'आर्य रमणी का जीवन कैसा होता है, आज इस विलासिता के युग में समझ लेना कुछ कठिन है। पूर्वकाल की बात है मुगल सेना एवं राजपूत वीरों में सारे दिन युद्ध हुआ। रणभूमि शव से पाट दी गयी। अनेक राजपूत वीर, अनेक क्षत्रिय युवक अपनी मातृभूमि की गोद में चिरनिद्रा में सो गये। संध्याकालीन सूर्य की रश्मियों में उनका निर्मल प्रशान्त मुख चमक रहा था।मातृभूमि के लिये अपना जीवन अर्पण करने