कंकड़ कंकड़ शंकर

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आशीष इंग्लिश, संस्कृत हिन्दी में स्नातकोत्तर कर चुका था और मैथ से स्नाकोत्तर की तैयारी में जुटा था उंसे माँ बाप परिवार को छोड़े सत्रह वर्ष हो चुके थे वह कभी कभी एकांत में रहता तो माता पिता एव भाईयों की याद आती किंतु वह तो जीवन के निश्चित उद्देश्यों के साथ निकला था जो काशी से महाकाल से ओंकारेश्वर तक के सफर के मध्य एक नई ऊंचाई एव पहचान बना चुका था ।ओंकारेश्वर में आदिवासियों के विकास एव कल्याण हेतु चलाये जा रहे कार्यक्रम भारत के आदिवासी समाज मे नए आत्म विश्वास को जन्म दे रहा था। विराज एव