प्रेम गली अति साँकरी - 31

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========= बीहड़ झंझावात से घिरी हुई मैं बिलकुल भी सहज नहीं हो पा रही थी | कोई न कोई ऐसी बात सामने आकर ऐसे खड़ी हो जाती जिसमें मैं घूमती ही रह जाती | कभी लगता जीवन इतना सहज नहीं है ---फिर लगता क्या मेरा ही ? और सब नहीं हैं इस जीवन से जुड़े ? जीवन तो सबके सामने परीक्षा लेकर आता है | मैं दिव्य के लिए बड़ी चिंतित होती जा रही थी | मन उसकी माँ के लिए सोचता रह जाता | क्या इतना बड़ा अपराध किया था रतनी ने जो उसको हर दिन कोई न कोई