भक्तराज ध्रुव - भाग 3

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संसार में प्रत्येक मनुष्य के सामने दो प्रकार की बातें आती हैं—एक तो सुनीति की और दूसरी सुरुचि की। जो रुचि शुभ नीति का विरोध करती है, वह रुचि कुरुचि है, हम अपनी उदारता से भले ही उसे सुरुचि कहें। सुरुचि के अनुसार चलने पर उत्तम सुखभोग कुछ दिनों के लिये प्राप्त हो सकता है। परंतु ध्रुव अथवा स्थायी लाभ सुनीति के अनुसार चलने से ही होता है। सुनीति सुरुचि की विरोधिनी नहीं है, बल्कि सुनीति के साथ सुरुचि का संयोग हो जाय तो आनन्द की और भी अभिवृद्धि हो जाय। परंतु मनुष्य का मन इतना चञ्चल है, इतना कमजोर