(16) दुःखी मन से ख़ुशी, रायजादा हॉउस पहुँचती है। वह काँपते हाथ से दरवाज़े की घण्टी बजाती है। थोड़ी ही देर में दरवाजा खुलता है। हरिराम ख़ुशी को देखकर (चौंकते हुए)- ख़ुशीजी आप ? सब कुशलमंगल तो है न ? सुबह भी आप अचानक यूँ चली गई। ख़ुशी- सब ठीक है, हम यहाँ अपना बैग लेने आए हैं। हरिराम- आपका बैग अर्नव भैया के कमरे में रखा है। ख़ुशी- जी शुक्रिया हरि भैया। क्या आप उनसे हमारा बैग ले आएंगे ? हरिराम- ख़ुशीजी, कहते हुए अच्छा तो नहीं लग रहा पर आप ही चले जाइए। बैग में रुपये थे तो