(13) गुमसुम सी ख़ुशी अपनी ही धुन में चली जा रही थी। वह आकाश के सामने से ऐसे निकल जाती है जैसे उसने आकाश को देखा ही नहीं। आकाश ख़ुशी के सामने जाकर उसे रोकते हुए कहता है- आकाश- आई एम सॉरी ख़ुशीजी, मेरी वज़ह से आपको भाई की बातें सुनना पड़ी। आप चलिए मेरे साथ मैं भाई को अभी क्लियर कर देता हूँ कि सारी गलती मेरी ही थी, मैंने ही आपसे ज़िद करके उनकी नकल उतरवाई थीं। ख़ुशी- (धीमे स्वर में)- कोई बात नहीं आकाशजी.. और आप उनको कितना भी क्लियर कर देंगे तब भी वह इंसान की