कर्मों में ले आएं यज्ञ जैसा परोपकार भाव भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है: -(यज्ञ की महिमा पर आधारित)यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबन्धनः।तदर्थं कर्म कौन्तेय मुक्तसंगः समाचर।।3/9।।इसका अर्थ है,यज्ञ के लिए किए हुए कर्म के अतिरिक्त अन्य कर्म में प्रवृत्त हुआ यह पुरुष कर्मों द्वारा बंधता है,इसलिए हे कौन्तेय तुम आसक्ति को त्यागकर यज्ञ के निमित्त ही कर्म का अच्छी तरह से आचरण करो। भगवान श्री कृष्ण ने इन पंक्तियों में आसक्ति को त्यागकर कर्म को यज्ञ के उद्देश्य से ही करने का निर्देश दिया है। यज्ञ एक ऐसी अवधारणा है,जो मनुष्य को वैयक्तिकता से सामूहिकता की ओर ले जाती