भाग 50: जीवन सूत्र 58:कर्मों की रेल में न लगने दें जड़ता की ब्रेकगीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है:-न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत् । कार्यते ह्यवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः।(3-5)।इसका अर्थ है-निःसंदेह कोई भी मनुष्य किसी भी काल में क्षणमात्र भी बिना कर्म किए नहीं रहता; क्योंकि सारा मनुष्य समुदाय प्रकृतिजनित गुणों द्वारा परवश हुआ कर्म करने के लिए बाध्य किया जाता है। वास्तव में कर्म का तात्पर्य केवल क्रिया या गति से नहीं है अर्थात मनुष्य जब कोई कार्य कर रहा है तब वह कर्म है और अगर वह एक स्थान पर बैठा है और कुछ नहीं कर रहा