अमन कुमार एक दिन मैं कनाॅट प्लेस के मंडी हाऊस बस स्टैंड पर खड़ा था। मुझे लक्ष्मीनगर जाना था मगर एक भी बस ऐसी नहीं आ रही थी जिसमें किसी और सवारी के चढ़ने की गुंजाइश हो मगर फिर भी सवारियाँ चढ़ रही थीं। ऐसी धकम-पेल दिल्ली की बसों में अक्सर देखने को मिल जाया करती है। मैंने लाख चाहा कि मैं भी किसी बस की भीड़ में शामिल हो जाऊँ मगर साहस नहीं जुटा सका। हालांकि लक्ष्मीनगर आॅटोरिक्शा भी जाती है मगर मेरी जेब में इतना वज़न नहीं था कि मैं आॅटो का किराया चुकाने के बाद रात का