"आओ , घनश्याम बैठो। और सुनाओ कैसे हो? आज कैसे आना हुआ?" मोहनचंद ने अपने मित्र घनश्याम को एक साथ प्रश्नों की झड़ी लगाते हुए पूछा। घनश्याम आज किसी काम से जयपुर आये थे। सोचा कि अपने मित्र से मिलते चले। "बस , अच्छे है। आज थोड़ा काम था तो आ गया। तुम सुनाओ कैसे हो?" घनश्याम ने एक आह भरकर शांत चित्त से कहा। "मैं भी बढ़िया हूँ। और हमारी प्रिया बिटिया कैसी है?" मोहनचंद ने जग में से पानी ,गिलास में डालकर घनश्याम को देते हुए कहा। "वो भी ठीक है। तुम्हारा लाल दिखाई नहीं दे रहा है।