परमभागवत नाभादासजी

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जाको जो स्वरूप सो अनूप लै दिखाय दियो, कियो यों कवित्त पटमिहो मध्य लाल है। गुण पै अपार साधु कहै अक चार हो मैं।अर्थ विस्तार कविराज टकसाल है।।सुनि सन्तसभा झूमि रही अलि श्रेणी मानो धूमि रही कहै यह कहा धौ रसाल है। सुने हे अगर अब जाने मैं अगर सही, चोवा भये नाभा सो सुगन्ध भक्तभाल है। —प्रियादासमहात्मा नाभादास भगवान्, भक्त और सन्त के लीलाचरित्र, भक्ति और साधना के बहुत बड़े मध्यकालीन साहित्यकार थे। उन्होने अपने परम प्रसिद्ध ‘भक्तमाल ग्रन्थ’ में सत्युग, त्रेता, द्वापर और कलियुग के भक्तो, सन्तो और महात्माओ का बडी श्रद्धा से, बढी भक्ति और अनुरक्ति से