कैसा हो बच्चों का साहित्य यशवंत कोठारी पिछले कुछ वर्षों में हिन्दी व भारतीय भाषाओं में प्रचुर मात्रा में बाल साहित्य का प्रकाशन हुआ है। अंग्रेजी के साहित्य से तुलना करने पर हिन्दी व भारतीय भाषाओं का साहित्य अभी भी काफी पीछे है। मगर संख्यात्यमक दृष्टि से काफी साहित्य छपकर आया है। सरकारी थोक खरीद, कमीशन बाजी तथा नये प्रकाशकों के कारण साहित्य में संख्यात्मक सुधार हुआ है, मगर गुणात्मक हास भी हुआ है। पाठ्यक्रम की पुस्तकों पर तो विचार-विमर्श तथा जांच परख होती हैं मगर अन्य जो खरीदी योग्य साहित्य छप कर आ रहा है उसकी स्थिति