उजाले की ओर –संस्मरण

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मित्रों स्नेहिल नमस्कार जीवन है तो इसमें कभी बहुत से उत्साह के क्षण भी हैं, कभी ऐसे क्षण भी हैं कि हम दुखी व कुंठित होने लगते हैं | ये कुछ ऐसा है कि अभी घनी धूप पड़ रही थी, पेड़-पौधे ही नहीं हर मनुष्य, अरे मनुष्य ही क्या प्राणी मात्र सूखा जा रहा था | अभी न जाने कहाँ से ऐसी बयार आई कि पवन में ताज़गी सी भर उठी | अचानक बादलों ने सुहानी छाया कर दी और जाने कैसे रूठे हुए इंद्रदेव प्रसन्न हो उठे | मयूर नृत्य करने लगे और मनुष्यों, प्राणियों के मन की बात