दादा जी को अपने भजन -पूजन से जब टाइम मिलता तो वह गांव में घूमने निकल जाते। गांव में एक किनारे पर एक सुरम्य स्थल था। वहां एक पुराना टूटा -फूटा शिव का मंदिर था। दादाजी के पास अब काफी रुपए इकट्ठे हो गए थे। इसलिए उनको खुजली होने लग गई थी कि इतने सारे रुपए कहां खर्च करें। तो दादाजी ने इस शिव मंदिर का पुनर्निर्माण करने की ठानी। उन्होंने अपना विचार मुझे बताया। मैं समझ गया कि दादाजी की नजर शिव के मंदिर पर ही है। अब वह उसको ठीक करके ही मानेंगे। मैंने सारे गांव में इसका