झोपड़ी - 7 - नया पंचांग

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नया साल शुरू हो गया। इसलिए मैंने दादाजी के लिए एक सुंदर पंचांग खरीदने की सोची। दादा जी, मौसी जी और मैं पैदल ही घूमते -घूमते गांव के बाजार में पहुंचे। वहां हम पुस्तकों की दुकान पर पहुंचे। पुस्तकों की दुकान पर बड़ी सुंदर-सुंदर अच्छी-अच्छी पुस्तकें सजी हुई थी और अच्छे-अच्छे पंचांग भी थे। हमने दादाजी की मर्जी के अनुसार सुंदर-सुंदर 1-2 पंचांग खरीदे और कुछ पुस्तकें भी खरीदी। इसके बाद हमने वस्त्र मार्केट की ओर कदम बढ़ाए। वहां जाकर हमने सुंदर- सुंदर वस्त्र खरीदे। फिर हमने निराश्रित लोगों के लिए भी काफी मात्रा में वस्त्र, कंबल आदि खरीदे। इसके