गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 44

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भाग 43 जीवन सूत्र 50 प्रलोभन और संकल्प के बीच युद्ध भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है:-इन्द्रियाणां हि चरतां यन्मनोऽनुविधीयते।तदस्य हरति प्रज्ञां वायुर्नावमिवाम्भसि।।2/67।। इसका अर्थ है,अपने-अपने विषयों में विचरती हुई इन्द्रियों में से एक ही इंद्रिय मन को अपना अनुगामी बना लेती है,इससे वह इंद्रिय जल- नौका को वायु की तरह मनुष्य की बुद्धि को हर लेता है। कितना आसान है मन और बुद्धि का अपने कर्तव्य मार्ग से हट जाना। मन भटका,इंद्रियों के उसके विषयों के पीछे भागने से। किसी एक ही इंद्रिय में ही यह सामर्थ्य है कि वह मन के उसकी ओर खिंचे चले आने