वैराग क्षणभंगुर नश्वर संसार उत्पन्न करता मन में वैराग मोह से मुक्ति का मोह क्या नहीं यह प्रेम का ही राग? अपेक्षाओं के प्रलोभनों में यथार्थ के कोलाहल से क्या संघर्ष समापन है वैराग? सुख दुख के अनुपात में अनुरागी मन का अध्यात्म से क्या आत्म-आलिगंन है वैराग? सुख यदि बढ़ाता फैलाव होती उसमें भी वैराग की अनुभुति दुख यदि बढ़ाता परिधि गहराती इच्छा मिले जीवन मुक्ति पीड़ित, प्रताड़ित, तिरस्कृत जीवन की विडंम्बनाओं से क्या पूर्ण-निर्वासन है वैराग? अथवा प्रफुल्ताओं के असीम आनंद को कैद करना है वैराग? क्या भ्रम है यह आकाश में विधुत