सोई तकदीर की मलिकाएँ - 46

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  46   रात को देर से सोने के बावजूद रोज के अभ्यास के चलते सुभाष की नींद अलस भोर में ही खुल गई । उसने धीरे से सिर उठाया और आँगन में झांका । बाहर अभी आसमान सुरमई रंग का ही था । सूर्य भगवान ने अपनी बंद आँखें अभी खोली न थी । वे अपना कोहरे का कम्बल लपेटे ऊँघ रहे थे । चाँद अपना काम खत्म करके घर जा चुका था ।तारे लोप हो चुके थे । आसमान में शुक्र तारा अभी भी अपनी पूरी शुभ्रता के साथ चमक रहा था । हाँ सप्तऋषि अपनी चारपाई बिल्कुल