गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 43

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भाग 42 :जीवन सूत्र 49: एकाग्रता से ही मिलती है सूझ गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है: -नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना।न चाभावयतः शान्तिरशान्तस्य कुतः सुखम्।।2/66।इसका अर्थ है,जो अपने मन और इंद्रियों को नहीं जीत पाता है,उस व्यक्ति में निश्चयात्मिका बुद्धि नहीं होती है।ऐसे संयमरहित अयुक्त पुरुष में भावना और ध्यान की क्षमता नहीं होती।ऐसे भावना रहित पुरुष को शान्ति नहीं मिलती और अशान्त पुरुष को सुख नहीं मिलता है। गीता के इस श्लोक से हम कुछ शब्दों को लेते हैं।वे हैं- चित्त को वश में करने की आवश्यकता। अपने मन को वश में करना आसान काम नहीं है।