लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-128 सभी बैठ गये। उपाध्याय मैडम, कीर्ति चंदाराणा, भावना और केतकी। उसके बाजू में पुकु और निकी। प्रसन्न ने उठकर सोफे के सामने रखी सुपारी की डिबिया, रिमोट कंट्रोल, पुस्तकें वगैरह उठाकर किनारे रख दिए। पानी के खाली ग्लास रसोई घर में रखे। उसकी इस हलचल का अर्थ किसी को भी समझ में नहीं आ रहा था। ‘मैं चांस नहीं लेना चाहता...किसी ने कुछ फेंक के मार दिया तो?’फिर हंसते हुए उसने एक झटका और दिया। ‘प्लीज सभी अपने अपने मोबाइल मेरे हाथों में दे दें। मैं अपनी कविताओं की रेकॉर्डिंग नहीं करने देना चाहता...नाराज मत होइएगा...लेकिन